Our Authors

सब कुछ देखें

Articles by डेविड मैकेसलैंड

एकता के लिए प्रयत्नशील रहना

1950 के दशक में, गोरे-काले के भेदभाव के कारण अलगाव की स्थिति थी। स्कूलों, रेस्तरां, सार्वजनिक वाहनों और पड़ोसियों में, रंग के आधार पर लोग विभाजित किए जाते थे। 1968 में मैंने अमेरिकी सेना की बेसिक ट्रेनिंग में प्रवेश पाया। हमारी कंपनी में भिन्न सांस्कृतिक समूहों के कई युवा पुरुष थे। हमने जल्द ही सीख लिया कि एक-दूसरे को समझने और स्वीकार करने के साथ हमें मिलकर काम करके अपने मिशन को पूरा करने की आवश्यकता थी।

जब पौलुस ने कोलोस्से की कलिसिया को पत्र लिखा, तो वे उन की विविधता से परिचित थे। उन्होंने उन्हें याद दिलाया, "उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी...(कुलुस्सियों 3:11)। ऐसे समूह में जहां ऐसे मतभेद लोगों को आसानी से विभाजित कर सकते थे, पौलुस ने उनसे करूणा, भलाई, दीनता, नम्रता, और सहनशीलता धारण करने का आग्रह किया और इन सभी गुणों के ऊपर, “प्रेम को...बान्ध लेने को कहा" (12,14)।

इन सिद्धांतों के अभ्यास में प्रयत्न और समय दोनों लग सकता है, लेकिन यह कार्य करने को यीशु ने हमें बुलाया है। उनके प्रति हमारा प्रेम विश्वासियों की समानता है। हम मसीह की देह के सदस्यों के रूप में विवेक, शांति और एकता के लिए प्रयत्नशील बने रहें।

विविधता के बीच, हम मसीह में और भी अधिक एकता का प्रयत्न करते रहें।

एक नाम

क्लियोपेट्रा, गैलीलियो, शेक्सपियर, एल्विस, पेले। ये सब इतने प्रसिद्ध हैं कि पहचान करने के लिए केवल उनका नाम ही काफ़ी है। जो वो थे और जो उन्होंने किया उसके कारण वे इतिहास में प्रमुख रहे हैं। परन्तु एक और नाम है जो इनसे या किसी अन्य नाम से ऊपर है!

परमेश्वर पुत्र के संसार में जन्म लेने से पहले ही स्वर्गदूत ने मरियम और यूसुफ को  उसका नाम यीशु  रखने को कहा था “क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा”। (मत्ती 1:21) और “वह...परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा। (लूका 1:32) यीशु एक प्रसिद्द व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि एक दास के रूप में आए थे जिसने अपने आप को विनम्र किया और क्रूस पर aaअपनी जान दी जिससे जो कोई उन्हें ग्रहण करे वह उसे क्षमा करके पाप के बन्धन से मुक्त कर सकें।

प्रेरित पौलुस ने लिखा, “इस कारण परमेश्वर ने उस को अति महान भी किया, और उस को वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है...”। (फिलिप्पियों 2:9-11)

हमारे सबसे बड़े आनन्द और सबसे बड़ी जरूरत में, जिस नाम में हमें शरण मिलती है, वह नाम यीशु है। वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा, और उसका प्रेम कभी ना हारेगा।

पूरा करने का समय

साल के अंत में अपूर्ण कार्य हमें दबा सकते हैं l घर की और नौकरी की जिम्मेदारियों का अंत नहीं हैं, और आज के अपूर्ण कार्य काल की सूची में चले जाते हैं l किन्तु हम अपने विश्वास की यात्रा में ठहरकर परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और पूर्ण कार्यों का उत्सव मनाएं l

पौलुस और बरनबास अपनी प्रथम प्रचार यात्रा के बाद, “वहां से वे जहाज़ पर अन्ताकिया गए, जहाँ वे उस काम के लिए जो उन्होंने पूरा किया था परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपें गए थे” (प्रेरितों 14:26) l जबकि अधिकतर काम दूसरों को यीशु के विषय बताना थे, उन्होंने ठहरकर पूर्ण किये गए काम के लिए धन्यवाद दिया l “उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया कि परमेश्वर ने उनके साथ होकर कैसे बड़े-बड़े काम किये, और अन्यजातियों(गैरयहूदियों) के लिए विश्वास का द्वार खोल दिया”(पद.27) l

बीते वर्ष परमेश्वर ने आपके द्वारा कौन से काम किये हैं? जिसे आप जानते हैं और प्रेम करते हैं, उसके लिए उसने विश्वास का द्वार किस तरह खोला है? उन तरीकों से जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, वह हमसे ऐसे कार्य करवाता है जो महत्वहीन अथवा अपूर्ण जान पड़ते हैं l

जब हम प्रभु की सेवा करते हुए अपूर्ण कार्य से दुखित होते हैं, हम ठहरकर उन बातों के लिए धन्यवाद देना न भूलें जिनमें परमेश्वर ने हमें उपयोग किया है l परमेश्वर ने अपने अनुग्रह से जो किया है उसके लिए आनंदित होना हमारे आनेवाले कार्यों के लिए मार्ग तैयार करता है!

आत्मा के लिए धन्य रात

जोसफ मोर और फ्रान्ज़ ग्रूबर द्वारा लोकप्रिय क्रिसमस गीत “धन्य रात, ”लिखे जाने से बहुत पहले एन्जलस सैलेसियास ने एक कविता लिखी थी :

देखो! रात के अँधेरे में परमेश्वर का बेटा जन्मा है,

और सब खोया हुआ और त्यागा हुआ बचा लिया गया l

ओ मानव क्या तुम्हारी आत्मा एक धन्य रात बन सकती है,

परमेश्वर तुम्हारे मन में जन्म लेकर सब कुछ ठीक कर देगा l

पोलैंड का एक सन्यासी, सैलेसियास ने 1657 में यह कविता चेरुबिक पिलग्रिम (लघु कविताओं का संग्रह) में प्रकाशित किया l हमारे चर्च के वार्षिक क्रिसमस आराधना में, संगीत मण्डली ने “काश आपकी आत्मा धन्य रात बन जाए,” गीत का दूसरा रूप गाया l

क्रिसमस का दोहरा रहस्य यह है कि परमेश्वर हममें से एक के समान बन गया कि हम उसके साथ एक हो जाएँ l यीशु ने हमें सही बनाने के लिए सभी अन्याय सहे l इसलिए प्रेरित पौलुस लिख सका, “इसलिए यदि कोई मसीह में है तो वह नयी सृष्टि है : पुरानी बातें बीत गयी हैं; देखो, सब बातें नयी हो गयी हैं” (2 कुरिं. 5:17-18) l

चाहे हमारे क्रिसमस  में परिवार के लोगों और मित्रों की उपस्थिति हो या न हो, जिसकी हम इच्छा करते हैं, किन्तु हम जानते हैं कि यीशु हमारे लिए जन्म लिया l

अहा, काश आपका हृदय उसके जन्म के लिए एक चरनी होता,

परमेश्वर एक  बार फिर इस धरती पर एक बच्चे के रूप में जन्म लेता l

नायक से बढ़कर

जब स्टार वार्स  (star Wars) फिल्म के प्रशंसक उत्सुकता से 8 वीं कड़ी, “द लास्ट जेडी,” के जारी होने का इंतज़ार कर रहे हैं, लोग 1977 से लेकर अभी तक इन फिल्मों की अद्भुत सफलता की लगातार जांच कर रहे हैं l सी.एन.एन. मनी(CNNMoney) के लिए काम करनेवाले मीडिया रिपोर्टर, फ्रैंक पालोटा कहते हैं कि स्टार वार्स  अनेक के साथ संपर्क साधते हैं जो “ऐसे समय में जब संसार को नायक/हीरो चाहिए एक नयी आशा और हित के प्रभाव” की चाहत रखते हैं l

यीशु के जन्म के समय, इस्राएली शोषित थे और मुक्तिदाता का इंतज़ार कर रहे थे जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने वर्षों पहले की थी l अनेक लोग रोमी अत्याचार से मुक्त करनेवाले एक नायक/हीरो की राह देख रहे थे, किन्तु यीशु एक राजनीतिक नायक/हीरो की तरह नहीं आया l इसके बदले, वह बैतलहम नगर में एक बालक के रूप में जन्म लिया l परिणामस्वरूप, अनेक उसे पहचान न सके l प्रेरित यूहन्ना ने लिखा, “वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया” (यूहन्ना 1:11) l

नायक/हीरो से बढ़कर, यीशु हमारा मुक्तिदाता बनकर आया l वह अन्धकार में परमेश्वर की ज्योति लेकर आया और अपना प्राण देने आया ताकि जो कोई उसे ग्रहण करता है क्षमा प्राप्त करके पाप के ताकत से छुटकारा पाएगा l यूहन्ना ने कहा “[वह] अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा” (पद.14) l

“परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं” (पद.12) l वास्तव में, यीशु ही वह एकमात्र आशा है जो संसार को चाहिए l

हमदर्दी की सामर्थ्य

R70i उम्र पोशाक पहन लें और आप तुरंत खुद को कमज़ोर दृष्टिवाला , ऊंचा सुनने वाला, और चलने-फिरने में सीमित, 40 वर्ष अधिक उम्र का महसूस करने लगेंगे l देखभाल करनेवालों द्वारा अपने मरीजों को बेहतर समझने के लिए उम्र पोशाक बनाया गया है l वाल स्ट्रीट जर्नल (अख़बार) के संवाददाता जेफरी फौलर ने एक उम्र पोशाक पहनने के बाद लिखा, “हमेशा याद रहनेवाला और कभी-कभी तकलीफ़देह, यह अनुभव केवल बुढ़ापा पर ही प्रकाश नहीं डालता है, किन्तु  प्रभाव डालनेवाली वास्तविक सामग्री भी हमदर्दी सिखा सकती है और हमारे चारों ओर के संसार के विषय हमारे दृष्टिकोण को आकार दे सकती है l”

हमदर्दी दूसरों की भावनाओं को समझने और उसे साझा करने की शक्ति है l यीशु के अनुयायियों के कठिन सताव के समय, इब्रानियों के लेखक ने सह-विश्वासियों से कहा, “कैदियों की ऐसी सुधि लो कि मानो उनके साथ तुम भी कैद हो, और जिनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता है, उनकी भी यह समझकर सुधि लिया करो कि हमारी भी देह है” (इब्रानियों 13:3) l

हमारे उद्धारकर्ता ने भी ऐसा ही हमारे साथ किया l यीशु हमारे समान बनाया गया, “सब बातों में भाईयों के समान ... जिससे वह ... लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित करे l क्योंकि जब उसने परीक्षा की दशा में दुःख उठाया, तो वह उनकी भी सहायता कर सकता है जिनकी परीक्षा होती है” (2:17-18) l

मसीह प्रभु, जो हमारे समान बन गया, हमें दूसरों के साथ खड़े होने के लिए बुलाता है “मानो जैसे [हम] उनके साथ” उनकी ज़रूरत के समय थे l

चिनार के पेड़ के बीज

जब हमारे बच्चे छोटे थे, वे पड़ोस के चिनार के पेड़ के गिरते बीजों को पकड़ना पसंद करते थे l प्रत्येक बीज हेलीकॉप्टर के पंखों की तरह उड़ता हुआ नीचे गिरता था l इन बीजों का उद्देश्य उड़ना नहीं था, किन्तु भूमि पर गिरकर पेड़ के रूप में उगना था l

यीशु ने क्रूसित होने से पहले, अपने चेलों से कहा, “वह समय आ गया है कि मनुष्य के पुत्र की महिमा हो ... जब तक गेहूँ का एक दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है; परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है” (यूहन्ना 12:23-24) l

जब यीशु के चेले चाहते थे कि वह मसीह के रूप में सम्मानित किया जाए, उसने अपना जीवन बलिदान किया ताकि उसमें विश्वास करने के द्वारा हम क्षमा किए जाएँ और रूपांतरित किये जाएँ l यीशु के अनुयायी होकर, हम उसकी आवाज़ सुनते हैं, “जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है, वह अनंत जीवन के लिए उस की रक्षा करेगा l यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ में हूँ, वहाँ मेरा सेवक भी होगा l यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा” (पद.25-26) l

चिनार पेड़ के बीज, उद्धारकर्ता, यीशु के आश्चर्यकर्म की ओर इशारा कर सकते हैं, जिसने मृत्यु सही कि हम उसके लिए जी सकें l

और कितना!

अक्टूबर 1915 में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऑस्वाल्ड चैम्बर्स ब्रिटिश राष्ट्रमंडल सैनिकों के लिए, YMCA की ओर से पादरी की सेवा करने मिस्र में काहिरा के निकट एक सेना प्रशिक्षण शिविर, जीटोन  शिविर पहुंचे l चैम्बर्स के द्वारा एक सप्ताह की रात्री धार्मिक सेवा की घोषणा पर, 400 लोग उस बड़े YMCA  झोपड़े में उसका उपदेश सुनने आ गए जिसका शीर्षक था, “प्रार्थना की अच्छाई क्या है?” बाद में, युद्ध के मध्य परमेश्वर को ढूँढ़ने वाले लोगों से व्यक्तिगत रूप से बातें करते हुए, ऑस्वाल्ड ने अक्सर लूका 11:13 का सन्दर्भ दिया, “अतः जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा” (लूका 11:13) l

परमेश्वर के पुत्र, यीशु के द्वारा मुफ्त उपहार क्षमा, आशा, और पवित्र आत्मा द्वारा हमारे जीवनों में उसकी जीवित उपस्थिति है l “क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो कोई ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा” (पद.10) l

नवम्बर 15, 1917 को अचानक अपेंडिक्स(बड़ी आंत का एक अतिरिक्त भाग) के फूटने से ऑस्वाल्ड चैम्बर्स की मृत्यु हो गयी l ऑस्वाल्ड की सेवा के परिणामस्वरुप विश्वास करनेवाला एक सैनिक संगमरमर पत्थर की बनी खुली बाइबिल की एक प्रतिरूप पर लूका 11:13 खुदवाकर उसके कब्र के निकट रख दिया : “स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा!”

प्रतिदिन परमेश्वर का यह अद्भुत उपहार हमारे लिए उपलब्ध है l

गुमनाम जीवन

जेन योलन का लेख “वर्किंग अप टू एनॉन”(गुमनाम) के  मेरी प्रति जिसे मैंने बहुत बार पढ़ा बहुत वर्ष पूर्व द राइटर  पत्रिका से निकाली गयी थी l वह कहती है, “सर्वश्रेष्ठ लेखक वे हैं जो वास्तव में, अन्दर से, गुमनाम रहना चाहते हैं l बतायी गई कहानी महत्वपूर्ण है, कहानी बतानेवाला नहीं l

हम यीशु, उद्धारकर्ता की कहानी बताते हैं, जिसने हमारे लिए अपना प्राण दिया l दूसरे विश्वासियों के साथ हम उसके लिए जीवन बिताते हैं और दूसरों के साथ उसका प्रेम बाँटते हैं l

रोमियों 12:3-21 दीनता और प्रेम के आचरण का वर्णन करता है जो यीशु के अनुयायिओं के रूप में हमारे परस्पर संबंधों में फैला होना चाहिए l “जैसा समझना चाहिए उससे बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे; पर जैसा परमेश्वर ने हर जगह हर एक को विश्वास परिमाण के अनुसार बाँट दिया है ... भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो” (पद.3, 10)

हमारी पिछली उपलब्धियों में घमंड करना दूसरों के वरदान के प्रति हमें अँधा कर सकता है l अभिमान हमारे भविष्य को गन्दा कर सकता है l

यूहन्ना बप्तिस्मादाता, जिसका उद्देश्य यीशु का मार्ग तैयार करना था, ने कहा, “वह बढ़े और मैं घटूँ” (यूहन्ना 3:30) l

हम सब के लिए यह सिद्धांत अच्छा है l